देर हुई, अंधेर नहीं (रेडियो नाटक)
हिमांशु जोशी |
लेखक: हिमांशु जोशी
पात्र (6)
अरुण
अरुण की माँ
राजेश
गीतिका
क्रिकेट कमेंटेटर (क्रिकेट की खबर देने वाला)
सूत्रधार / उद्घोषक (नाटक में चल रहे नाटक के बारे में बताने वाला)
अरुण की माँ
राजेश
गीतिका
क्रिकेट कमेंटेटर (क्रिकेट की खबर देने वाला)
सूत्रधार / उद्घोषक (नाटक में चल रहे नाटक के बारे में बताने वाला)
उद्घोषक: दृश्य 1, एनएसडी दिल्ली में रात के 8 बजे। पूरे हॉल में अंधेरा है और चमकती लाइट के बीच, स्टेज पर
अरुण: यार, राजेश मैं रीना से बहुत प्यार करता था लेकिन तूने मेरा दोस्त होकर भी उससे मोहब्बत कर ली। उसे मुझसे छीन लिया। यह दोस्ती नहीं धोखा है। तुझे याद है वह दिन जब मैंने ऑफिस में पहली बार तेरी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया था। तब से आज तक न जाने कब कब हमने एक ही थाली में खाना खाया यार, तूने तो उसमें भी छेद कर दिया। मुझे नफ़रत हो रही है उस दिन से, उस पल से, और... और तुझसे! हाँ, मुझे तुझसे नफ़रत है धोखेबाज!
राजेश: अरुण मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया, मुझे धोखेबाज मत कहो यार! मुझे ज़रा भी अहसास नहीं था कि तुम रीना से प्यार करते हो। उसका व्यवहार भी तो तुम्हारे साथ प्रेमी वाला कभी था ही नहीं। वह तुमसे नहीं, मुझसे… हाँ मुझसे हमेशा हँसते खिलखिलाते बात करती थी। और फिर... फिर धीरे-धीरे मेरा ख्याल रखने लगी। मैं भी धीरे-धीरे उसकी मोहब्बत में डूब गया। वो मुझसे मोहब्बत करती है, बेइंतहा मोहब्बत। (रुआँसा होकर) यार, मैं कितना बदनसीब हूँ। एक तरह मेरी दोस्ती है और एक तरफ प्यार। मैं तुझे नहीं खोना चाहता मेरे दोस्त।
अरुण: अरे जा जा। मेरी मोहब्बत छीन कर तू कौन सा खुश रह लेगा। जा तू अपनी मोहब्बत को गले में लेकर घूम और मैं तेरे लिए बद्दुआ करते जिंदगी निकाल लूंगा। ऐसा दोस्त किसी को न मिले। तू दोस्ती के नाम पर बदनुमा धब्बा है धब्बा। जिसे तेरा खून भी साफ नहीं कर सकता।
राजेश: अरुण ये सब मत बोल यार। मत बोल। खून की बात करता है? तूने मुझे पहचाना ही नहीं। ये ले और खुश रह।
(पृष्ठभूमि में दो गोलियाँ चलने की आवाज़ – संभव हो तो गीत की पंक्ति: अब हम तो सफ़र करते हैं...)
अरुण: यार, राजेश मैं रीना से बहुत प्यार करता था लेकिन तूने मेरा दोस्त होकर भी उससे मोहब्बत कर ली। उसे मुझसे छीन लिया। यह दोस्ती नहीं धोखा है। तुझे याद है वह दिन जब मैंने ऑफिस में पहली बार तेरी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया था। तब से आज तक न जाने कब कब हमने एक ही थाली में खाना खाया यार, तूने तो उसमें भी छेद कर दिया। मुझे नफ़रत हो रही है उस दिन से, उस पल से, और... और तुझसे! हाँ, मुझे तुझसे नफ़रत है धोखेबाज!
राजेश: अरुण मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया, मुझे धोखेबाज मत कहो यार! मुझे ज़रा भी अहसास नहीं था कि तुम रीना से प्यार करते हो। उसका व्यवहार भी तो तुम्हारे साथ प्रेमी वाला कभी था ही नहीं। वह तुमसे नहीं, मुझसे… हाँ मुझसे हमेशा हँसते खिलखिलाते बात करती थी। और फिर... फिर धीरे-धीरे मेरा ख्याल रखने लगी। मैं भी धीरे-धीरे उसकी मोहब्बत में डूब गया। वो मुझसे मोहब्बत करती है, बेइंतहा मोहब्बत। (रुआँसा होकर) यार, मैं कितना बदनसीब हूँ। एक तरह मेरी दोस्ती है और एक तरफ प्यार। मैं तुझे नहीं खोना चाहता मेरे दोस्त।
अरुण: अरे जा जा। मेरी मोहब्बत छीन कर तू कौन सा खुश रह लेगा। जा तू अपनी मोहब्बत को गले में लेकर घूम और मैं तेरे लिए बद्दुआ करते जिंदगी निकाल लूंगा। ऐसा दोस्त किसी को न मिले। तू दोस्ती के नाम पर बदनुमा धब्बा है धब्बा। जिसे तेरा खून भी साफ नहीं कर सकता।
राजेश: अरुण ये सब मत बोल यार। मत बोल। खून की बात करता है? तूने मुझे पहचाना ही नहीं। ये ले और खुश रह।
(पृष्ठभूमि में दो गोलियाँ चलने की आवाज़ – संभव हो तो गीत की पंक्ति: अब हम तो सफ़र करते हैं...)
अरुण: (चीखते हुए) नहीं, नहीं, नहीं! आह, , राजेश यार तूने ये क्या कर लिया। (जोर से रोता है)
उदघोषक: इसी दर्दनाक दृश्य के साथ, पर्दा गिर जाता है और पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट की आवाज़
(तालियों की गड़गड़ाहट की आवाज़)
उदघोषक: दृश्य 2, एनएसडी दिल्ली का पार्क
(चिड़ियों की चहचहाहट की आवाज़)
राजेश: वाह यार अरुण, तेरे संवादों में तो स्टेज जीवित हो जाता है। तू लाजवाब एक्टर है यार। एक दिन जरूर बहुत आगे तक जाएगा।
अरुण: (हँसते हुए) ये तो तेरी दोस्ती कह रही है, यारी और आशिकी, दोनों अंधे होते हैं मेरी जान (दोनों जोर से हँसते हुए)
राजेश: चल चल अब ज्यादा बात न बना और पप्पू चाय वाले के यहाँ चाय पिला।
अरुण: अरे पप्पू के यहाँ ग्लास धोकर चाय पिलाऊँ क्या यार। तुझे पता है ये थिएटर वाली एक्टर बिरादरी में जेब खाली ही रहती है। एक्टिंग दिल को तो सुकून दे जाती है पर पेट को नहीं दे पाती।
राजेश: वाह यार अरुण, तेरे संवादों में तो स्टेज जीवित हो जाता है। तू लाजवाब एक्टर है यार। एक दिन जरूर बहुत आगे तक जाएगा।
अरुण: (हँसते हुए) ये तो तेरी दोस्ती कह रही है, यारी और आशिकी, दोनों अंधे होते हैं मेरी जान (दोनों जोर से हँसते हुए)
राजेश: चल चल अब ज्यादा बात न बना और पप्पू चाय वाले के यहाँ चाय पिला।
अरुण: अरे पप्पू के यहाँ ग्लास धोकर चाय पिलाऊँ क्या यार। तुझे पता है ये थिएटर वाली एक्टर बिरादरी में जेब खाली ही रहती है। एक्टिंग दिल को तो सुकून दे जाती है पर पेट को नहीं दे पाती।
राजेश: हाँ, यार मुझे तो डर है कहीं पेट की आग हमारी एक्टिंग की आग को ठंडा न कर दे।
उदघोषक: दृश्य 3, अरुण का घर, पृष्ठभूमि में भारत की 1983 वर्ल्ड कप की जीत की खबर
क्रिकेट कमेंटेटर: अंग्रेजों की धरती पर भारत ने आज वेस्टइंडीज का घमंड तोड़ दिया है! साल 1983 के फाइनल में 183 रन बनाकर भी भारत ने विश्व कप फाइनल अपने नाम कर लिया है। क्रिकेट की नई महाशक्ति हमें मिल गई है और नया हीरो भी। इंडिया का नया रॉकस्टार कपिल देव।
उदघोषक: अरुण अपने बिस्तर में बैठकर एक संवाद याद कर रहा है।
अरुण: शालिनी मैं तुम्हारे लिए दुनिया हिला दूंगा। नहीं, नहीं, ऐसे नहीं – शालिनी, मैं दुनिया को इधर से उधर कर दूंगा। अगर तुमने सुकेश के लिए मुझे छोड़ा तो मैं ये भूल जाऊंगा कि मैंने कभी तुम्हें प्यार किया था। मैं मर सकता हूँ लेकिन तुम्हें किसी और की नहीं होने दूंगा।
उदघोषक: अरुण अपने बिस्तर में बैठकर एक संवाद याद कर रहा है।
अरुण: शालिनी मैं तुम्हारे लिए दुनिया हिला दूंगा। नहीं, नहीं, ऐसे नहीं – शालिनी, मैं दुनिया को इधर से उधर कर दूंगा। अगर तुमने सुकेश के लिए मुझे छोड़ा तो मैं ये भूल जाऊंगा कि मैंने कभी तुम्हें प्यार किया था। मैं मर सकता हूँ लेकिन तुम्हें किसी और की नहीं होने दूंगा।
अरुण की माँ: (अरुण की बात बीच में ही रोकते) - बेटे ये पागलों की तरह खुद से बातें करना बंद कर। काम की बात कर। तूने शादी के बारे में क्या सोचा है?
अरुण: (लाड़ से) माँ! कितनी बार बताऊंगा। मैं इतनी जल्दी ये शादी नहीं करना चाहता, अभी मुझे एक्टिंग में कैरियर बनाना है।
अरुण की माँ: न बेटा न, ये एक्टिंग वेक्टिंग तो आवारा लोगों का काम है, तू अपने पापा का दवाइयों का काम सम्भाल। तू नाच-गाने में लग जायेगा तो फिर पापा के बिजनेस को कौन आगे बढ़ाएगा। सोच ले ठीक से बेटा,फिर मुझे जल्दी से बता, मैं डिनर बनाने जा रही हूँ। डिनर करते समय इस बारे में बात करेंगे।
(माँ के जाने की आवाज़)
अरुण: (भावविह्वल होकर) कैसी दुनिया है यह। आर्ट और आर्टिस्ट की कोई वेल्यू ही नहीं है। हर समय एक अलग तरह की टर्र-टर्र्। ये एक्टर, राइटर हैं भी तो टर परिवार के हिस्से हैं लेकिन इन्हें डॉक्टर जैसी टर नौकरी से क्यों कम आंका जाता है, जैसे एक्टर न हो टमाटर हो। कोई भी आकर केचप बना डालता है। अरे यार, यह तो डायलॉग बन गया!
अरुण: (भावविह्वल होकर) कैसी दुनिया है यह। आर्ट और आर्टिस्ट की कोई वेल्यू ही नहीं है। हर समय एक अलग तरह की टर्र-टर्र्। ये एक्टर, राइटर हैं भी तो टर परिवार के हिस्से हैं लेकिन इन्हें डॉक्टर जैसी टर नौकरी से क्यों कम आंका जाता है, जैसे एक्टर न हो टमाटर हो। कोई भी आकर केचप बना डालता है। अरे यार, यह तो डायलॉग बन गया!
उदघोषक: दृश्य 4, अरुण का घर - भारत के 2007 में 20-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने की खबर चल रही है
कमेंटेटर: जी हाँ, यहाँ चैंपियन बना है भारत। जगह है दक्षिण अफ्रीका, साल है 2007 और 20-20 वर्ल्ड का पहला चैंपियन है भारत। और और भारत ने हराया किसको है,, अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को। अब आज से क्रिकेट एक नया युग देखेगा - धोनी युग। भारत में जश्न मनेगा। इंडिया इंडिया।
अरुण: गीतिका बेटी, सुनो तो, मेरा चश्मा कहीं रखा होगा।
अरुण: गीतिका बेटी, सुनो तो, मेरा चश्मा कहीं रखा होगा।
गीतिका: पापा यह लो, दिन भर दुकान में काम करते रहते हो। हम लोगों की वजह से खुद को ही भूल जाते हो। देखो पापा, आज मेरा ये एमबीए पूरा हो रहा है। अब मैं दुकान में रहूँगी। ...और आप जो ये शीशे के आगे बोलते रहते हो न, अब आप थिएटर में बोलोगे, लाइव ऑडिएंस के सामने, सुपरस्टार, अरुण कुमार कालरा।
अरुण: अरे बेटा, इतनी जल्दी बड़ी न बन। तेरी शादी करवा कर मैं अपना कुछ देख लूंगा। तेरी शादी में मुझे कोई कमी नहीं रखनी। ये अडानी, अम्बानी की शादियों से कोई कम न होगी मेरी बेटी की शादी।
गीतिका: शादी की ऐसी की तैसी। पापा इसीलिये तो हिंदुस्तान आज तक डिवेलपिंग कंट्री है, डिवेलप्ड में शुमार नहीं हुआ। जिसे देखो वह पंडित बनकर शादी कराने में लगा हुआ है। दादी ने आपकी शादी करा दी, और अब आप मेरी शादी कराने में लगे हो। (कुछ रुककर) न पापा, आप दुकान नहीं जाओगे तो नहीं जाओगे। मैं रोज़ आपको शीशे के सामने एक्टिंग करते देखती हूँ। याद है, आपकी, डायलॉग बोलते जो क्लिप बनाई थी? मैंने वह रील फेसबुक पर अपलोड कर दी थी। 10 दिन में आपके उस डायलॉग को तीस हज़ार लोगों ने देख लिया है। एक बार वही डॉयलॉग फिर से तो सुना दो, पापा।
अरुण: (हँसते हुए) ले सुन तू भी।
रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप के भी बाप लगते हैं… नाम है कालरा। हाँ, अरुण कुमार कालरा।
(फ़ोन की घण्टी की आवाज़)
अरुण: (हँसते हुए) ले सुन तू भी।
रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप के भी बाप लगते हैं… नाम है कालरा। हाँ, अरुण कुमार कालरा।
(फ़ोन की घण्टी की आवाज़)
अरुण: हाँ राजेश भाई, क्या हाल हैं? आज बड़े दिन बाद याद किया मुझे। (चौंकते हुए) क्या! वाकई? यार मुझे विश्वास नहीं हो रहा। (भारी आवाज़ में) हाँ, हाँ, मैं तुझे थोड़ी देर में फोन करता हूँ।
गीतिका: (चिंतित आवाज़ में) क्या हुआ पापा? क्या कह रहे थे राजेश अंकल? सब ठीक तो है न?
अरुण: (लगभग रोते हुए) बेटा तेरी वो रील सेनेगल साब ने भी देखी।
गीतिका: वाओ, वो डायरेक्टर सेनेगल?
अरुण: हाँ वही। वो राजेश अंकल के फेसबुक फ्रेंड भी है। उनका एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट अटका हुआ था। जैसा प्रोटैगनिस्ट चाहिये था मिल ही नहीं रहा था। बहुत दिन से उन्होंने राजेश से बात की, और बोले.... (भरे गले से) इस रील ने उनका काम कर दिया। ...वो, वो मेरे साथ एक फ़िल्म बनाना चाहते हैं।
गीतिका: देखा पापा! मैं कहती थी न एक दिन सारी दुनिया आपकी एक्टिंग का लोहा मानेगी...
गीतिका: वाओ, वो डायरेक्टर सेनेगल?
अरुण: हाँ वही। वो राजेश अंकल के फेसबुक फ्रेंड भी है। उनका एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट अटका हुआ था। जैसा प्रोटैगनिस्ट चाहिये था मिल ही नहीं रहा था। बहुत दिन से उन्होंने राजेश से बात की, और बोले.... (भरे गले से) इस रील ने उनका काम कर दिया। ...वो, वो मेरे साथ एक फ़िल्म बनाना चाहते हैं।
गीतिका: देखा पापा! मैं कहती थी न एक दिन सारी दुनिया आपकी एक्टिंग का लोहा मानेगी...
***
उदघोषक: दृश्य 5, साल 2019 में भारत के वर्ल्ड कप सेमीफाइनल हारने की खबर के चलते
कमेंटेटर: 1983 के बाद अंग्रेजों की धरती पर तिरंगा लहराने का भारतीयों का सपना यहीं खत्म होता है। एकदिवसीय वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में भारत न्यूज़ीलैंड से कांटे की टक्कर में 18 रन से हार गया है। शायद इस हार के साथ धोनी युग भी समाप्त हो जाएगा
(फ़ोन की घण्टी की आवाज़)
गीतिका: हेलो पापा, क्या हाल चाल हैं?
अरुण: अच्छा हूँ बेटा
गीतिका: ब्रेकफ़ास्ट हो गया?
अरुण: हाँ बेटा! एक घंटे में होटल से निकलूंगा। लोकेशन थोड़ी दूर है।
गीतिका: खाना टाइम से खा लेना। और हाँ, शूटिंग करते कपड़े जरूर ठीक से पहन लेना। कहीं मेरे एक्टर पापा को जर्मनी में ठंड न लग जाए। (हँसती हुई गीतिका)
गीतिका: हेलो पापा, क्या हाल चाल हैं?
अरुण: अच्छा हूँ बेटा
गीतिका: ब्रेकफ़ास्ट हो गया?
अरुण: हाँ बेटा! एक घंटे में होटल से निकलूंगा। लोकेशन थोड़ी दूर है।
गीतिका: खाना टाइम से खा लेना। और हाँ, शूटिंग करते कपड़े जरूर ठीक से पहन लेना। कहीं मेरे एक्टर पापा को जर्मनी में ठंड न लग जाए। (हँसती हुई गीतिका)
अरुण: हाँ बिटिया रानी!
माँ: बेटा, पापा से बात हो रही थी क्या?
गीतिका: हाँ दादी, आज उनकी शूटिंग है जर्मनी में।
माँ: शाबाश बेटा! मेरे बेटे की बचपन की इच्छा आज तेरी वजह से पूरी हो सकी है। मुझे भी अब समझ आ गया है कि बच्चों को उड़ने देना चाहिये। उनके सपनों को पिंजरे में क़ैद नहीं करना चाहिये।
(दोनों की समवेत हँसी)
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