कारावास (रेडियो नाटक)
अनुराग शर्मा |
कथा व पटकथा: अनुराग शर्मा
पात्र (5):
दादी (और दृश्य 4 की माँ): लगभग 65 वर्षीया सेवानिवृत्त महिला
अमित (और मिट्ठू): 40 वर्षीय पुरुष (और 18 वर्षीय किशोर)
माया: 8-10 वर्ष की बालिका
अजनबी: वयस्क पुरुष
ज़क्कनभाई: 20-30 वर्ष का उद्दण्ड युवा गैंग्स्टर
***
दृश्य 1
[डोरबैल की आवाज़ – दरवाज़ा खुलता है]
अमित: माया, माया? कहाँ हो? देखो तो, कौन आया है
माया: दादीजी, दादीजी! दादीजी आ गयीं। दादीजी, इस बार आपने आने में इतनी देर क्यों लगाई?
दादी: क्योंकि, ... छुट्टियाँ नहीं थीं न!
माया: आपको छुट्टियों से क्या काम? आप तो रिटायर हो चुकी हैं
दादी: अरे मेरी नहीं बुद्धू, तुम्हारी छुट्टियाँ। स्कूल खुले होते तो तुम तो रोज़ स्कूल चली जातीं, और मैं यहाँ बैठकर मक्खियाँ मारती रहती।
माया: हाँ, यह बात तो है। आप सही टाइम पर आयी हैं। आपको एक बहुत इंटरेस्टिंग बात बतानी थी। आज स्कूल में मुझे टाइमआउट मिला।
दादी: वह क्यों भला?
माया: आज मैंने एक क्लासमेट को मारा। वह रोने लगा तो टीचर ने आकर हमसे पूछा कि क्या हुआ, और बताने पर हम दोनों को टाइमआउट दे दिया।
दादी: लड़ना बुरी बात है बेटा। लड़ाई से बचना चाहिये
माया: पहले उसने मेरे बाल खींचे थी दादीजी, इसलिये मैंने उसे मारा। टीचर ने फिर भी उसके साथ-साथ मुझे भी सज़ा दी।
दादी: हाँ बेटा, कानून ऐसा ही होता है। उस लड़के को बाल खींचने की सज़ा मिली, और आपको थप्पड़ मारने की सज़ा मिली।
माया: लेकिन अगर पहले वह मेरे बाल नहीं खींचता, तो हमारी लड़ाई नहीं होती, क्या कानून को इतनी समझ भी नहीं है।
दादी: हाँ बेटा, … कानून को इतनी समझ नहीं होती... (उदास स्वर में) क्योंकि वह किसी को पहली ग़लती करने से नहीं रोक पाता है।
माया: लेकिन दादीजी, आप इतनी दुखी क्यों हैं? मैं तो ठीक हूँ। देखिये मुझे कुछ नहीं हुआ। हा हा हा
दादी: हाँ बिटिया, अच्छी बात है कि आप ठीक हैं लेकिन कभी-कभी ज़रा सी चोट भी खतरनाक हो सकती है। इसलिये जब तक बहुत ज़रूरी न हो, लड़ने से बचना चाहिये।
अमित: दादी इतनी दूर से आयी हैं। उन्हें थोड़ा आराम करने दो माया। माँ, आप चाय लीजिये।
माया: दादीजी, अभी आप आराम कीजिये, फिर शाम को मुझे बताना कि आप मेरे टाइमआउट से दुखी क्यों हैं
दादी: शाम को क्यों? कुछ देर रुको, मैं अभी बताती हूँ
अमित: रहने दीजिये न माँ, आप फिर इमोशनल हो जायेंगी। (हँसते हुए) मेरा मिट्ठू, मेरा मिट्ठू करेंगी
दादी: नहीं बेटा, मैं मेरा मिट्ठू, मेरा मिट्ठू नहीं करूंगी। और माया भी अब बड़ी हो गयी है। वह सब समझती है। आज उसे मेरा मिट्ठू वाली पुरानी कहानी सुना ही देती हूँ।
माया: हाँ दादीजी, सुनाइये न!
दादी: बहुत पुरानी बात है। एक बहुत लड़का था, बहुत अच्छा।
माया: मेरे जैसा? क्या नाम था उसका?
दादी: हाँ, एक्ज़ेक्टली तुम्हारे जैसा। सबका प्यारा। एकदम मीठा। कहानी में उसका नाम मिट्ठू रख लेते हैं। मिट्ठू कभी किसी से भी लड़ता नहीं था। हर सण्डे को अपनी साइकिल से टेनिस खेलने जाता था। एक दिन जब मैं साइकिल से घर आ रहा था तब कुछ ऐसा हुआ कि उसकी ज़िंदगी बदल गयी
माया: उसे जिन्न वाला चिराग़ मिल गया क्या दादी?
दादी: नहीं बेटा, जिन्न और जादुई चिराग़ मनगढ़ंत कहानियों में होते हैं। असली ज़िंदगी में बस इंसान होते हैं – अच्छे भी और बुरे भी। ... मिट्ठू जैसे सीधे बच्चे भी, और ज़क्कनभाई जैसे दादा भी (धीरे-धीरे) मिट्ठू साइकल से घर आ रहा था कि उसके आगे चल रही एक कार एकदम से रुक गयी। मिट्ठू ने ब्रेक लगाये लेकिन रोकते-रोकते भी उसकी साइकिल कार से टकरा गयी। कार में से ज़क्कनभाई उतरा। सब उससे डरते थे। लहीम-शहीम, लम्बा चौड़ा शरीर, ये बड़ी-बड़ी मूंछें, शेर की दहाड़ जैसी आवाज़, और कमर में बंधा रिवॉल्वर।
***
दृश्य 2
[सड़क पर ट्रैफ़िक की आवाज़]
मिट्ठू: गीत गाता हूँ मैं, गुनगुनाता हूँ मैं...
[अचानक कार रुकने की स्क्रीच साउंड, कार का दरवाज़ा खुलने की आवाज़]
ज़क्कनभाई: अबे ओ ढक्कन, आँखें हैं कि बटन? देख के नहीं चलता?
मिट्ठू: सॉरी, कार एकदम से रुक गयी, मुझे अंदाज़ा नहीं था
ज़क्कनभाई: कार एकदम से ही रुकती है, गधे। पॉवरब्रेक हैं इसमें। सड़क तेरी माँ की है क्या जो कम्पनीबाग़ समझ के टहल रहा है यहाँ। एक मिनट... ये टेललाइट तोड़ दी तूने, इसका पैसा क्या तेरा बाप भरेगा?
मिट्ठू: (शांति से) टेललाइट मैंने नहीं तोड़ी है
ज़क्कनभाई: तूने नहीं तोड़ी, तो क्या मैंने अंदर से बैठे-बैठे तोड़ दी?
मिट्ठू: (शांति से) टेललाइट मैंने नहीं तोड़ी है। यह तो पहले की टूटी है, अभी टूटी होती तो टुकड़े सड़क पर गिरे होते
ज़क्कनभाई: साले, ज़क्कनभाई से ज़ुबान लड़ाता है। पैसे निकाल इसके। निका... ल जल्दी
[थप्पड़ की आवाज़]
मिट्ठू: (कराहकर) मार क्यों रहे हो। मैं पैसे क्यों दूँ? गुंडागर्दी है क्या?
[एक और थप्पड़ की आवाज़]
ज़क्कनभाई: मुझे गुंडा बोलता है? पैसे निकाल शराफ़त से वरना टेंटुआ दबा दूंगा अभी।
मिट्ठू: (चिल्लाकर) हट पीछे
[धड़ाम से गिरने की आवाज़, सर फटने की आवाज़]
मिट्ठू: (हताश) ओ माइ गॉड, यह तो गिर गया, चोट तो नहीं लगी?
ज़क्कनभाई: मर गया, मार डाला... मुझे कुछ हुआ तो तुझे छोड़ूंगा नहीं मैं...
[गाड़ियों के आने, रुकने, जाने की आवाज़]
मिट्ठू: हे राम, इतनी चोट लग गयी... खून बह रहा है, चिंता मत करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा। जल्दी से अस्पताल चलते हैं (चिल्लाकर) रोको, गाड़ी रोको, चोट लगी है। प्लीज़ कोई तो रुको, … अरे बहुत चोट लगी है... वह मर जायेगा।... कोई तो दया करो
[गाड़ियों के आने, रुकने, जाने की आवाज़]
अजनबी: क्या हुआ? तुमने कार से मार दिया इसे?
मिट्ठू: नहीं, नहीं, लड़ाई हो गयी थी, गिरने से चोट लगी है। देखो कितना खून बह रहा है, लेकिन कोई गाड़ी रुक नहीं रही है।
अजनबी: पुलिस केस है। कोई नहीं रुकेगा, आगे बीटबॉक्स है मैं उन्हें बोलता हूँ, वे कुछ करेंगे|
[पुलिस कार की आवाज़]
***
दृश्य 3
माया: फिर क्या हुआ दादीजी? कोई गाड़ी रुकी क्या?
दादी: नहीं बेटा, उनमें से कोई नहीं रुका। लेकिन उस स्कूटर वाले ने पुलिस को बताया तो उनकी गाड़ी ज़क्कनभाई को अस्पताल ले गयी
माया: मिट्ठू तो ठीक था न? (रुआँसी होकर) ज़क्कनभाई ने ठीक होकर मिट्ठू को बहुत मारा क्या?
दादी: नहीं बेटा, मिट्ठू ठीक था। ज़क्कनभाई ने उसे नहीं मारा, क्योंकि ज़क्कनभाई बचा ही नहीं। उसे इतनी ब्लीडिंग हो चुकी थी कि डॉक्टर उसे बचा नहीं सके।
माया: मिट्ठू घर आ गया? उसके माँ-पापा तो उसे ठीक-ठाक देखकर बहुत खुश हुए होंगे
दादी: नहीं बेटा, बेचारे मिट्ठू को पुलिस पकड़कर ले गयी। उस पर ज़क्कनभाई को मारने का मुकदमा चला।
माया: फिर?
दादी: फिर पुलिस ने मिट्ठू को किशोर सदन भेज दिया
माया: किशोर सदन, मतलब?
दादी: किशोर सदन, मतलब बच्चों की जेल। मिट्ठू को सज़ा मिली। वह कई साल तक जेल में रहा।
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दृश्य 4
मिट्ठू: (उदास) माँ, मैंने उसे नहीं मारा। वह मुझसे लड़ने आया, उसने मुझे मारा। उसने मेरा गला दबाया, तब मैंने उसे धक्का दिया। वह गिर गया। उसके सिर में चोट लगी। मैंने फिर भी उसे बचाने की कोशिश की। हाथ से दबाकर खून बहने से रोके रहा। आती-जाती गाड़ियाँ रोकीं, … (हताश) कोई भी नहीं रुका। ... कोई रुक जाता तो वह बच जाता माँ, वह बच जाता। उसके घर में सब मुझे उसका हत्यारा मान रहे होंगे...
माँ: नहीं बेटा, कोई तुम्हें हत्यारा नहीं मान रहा। उन्हें भी सब पता है, और हमें भी सब पता है। तुम्हें हत्यारा मानते तो कोई बड़ी सज़ा मिलती। ज़क्कनभाई के मुहल्ले में तो लोगों ने उसके मरने की मिठाई बाँटी है। उसके अपने माँ-बाप को भी उसके मरने का कोई अफ़सोस नहीं है।
मिट्ठू: (उदास) माँ, मैं दो साल जेल में रहूंगा?
माँ: जेल नहीं, किशोर सदन। बेटा दो साल होते ही कितने हैं, पता भी नहीं लगेंगे। मन लगाकर अपनी पढ़ाई करते रहना।
मिट्ठू: (उदास) माँ, आपको मुझसे कितनी उम्मीदें थीं। मैंने आपको निराश कर दिया।
माँ: नहीं बेटा, तू हमारा शेर बच्चा है। इस मौके का पूरा फ़ायदा उठाना, और वहाँ से और अच्छा इंसान बनकर बाहर आना।
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दृश्य 5
माया: फिर क्या हुआ? मिट्ठू को पुलिस ले गयी? उसकी माँ तो डर गयी होगी?
दादी: हाँ बेटा, शुरू में तो उसकी माँ बहुत डिप्रेस हो गयी थी। लेकिन धीरे-धीरे ठीक हो गयी क्योंकि उसे पता था कि उसका बेटा हत्यारा नहीं है। वह फँस गया क्योंकि वह ग़लत समय पर ग़लत जगह पर था।
माया: हाँ दादीजी। फिर मिट्ठू का घर, उसके सब दोस्त छूट गये? वह एकदम अकेला हो गया? बीमार पड़ गया?
दादी: (रुआँसी) हाँ बेटा, घर और दोस्त पीछे छूटे, और अकेले हो गये
अमित: माँ, आप आराम करो, आगे की बात मैं बताता हूँ।
दादी: (रुआँसी) हाँ, मेरा गला रुंध रहा है।
अमित: नहीं बेटा, मिट्ठू अकेला नहीं हुआ। उसके पुराने दोस्त, उसकी माँ, सब उसके साथ थे। किशोर सदन ने उसे पढ़ाई के लिये अपने स्कूल भी जाने दिया। स्कूल में तो अब वह हीरो बन गया था क्योंकि उसने अपने शहर के लोगों को वहाँ के सबसे बड़े गुंडे से बचा लिया था।
माया: अच्छा!
अमित: हाँ। शुरू के कुछ दिन तो उसे लगा कि उसका फ़्यूचर, उसका करियर, सब खत्म हो गया है, लेकिन फिर किशोर सदन भी उसके लिए एक विद्यालय जैसा बन गया। अपने स्कूल में वह पढ़ाई करने आता था, लेकिन किशोर सदन में उसने जीवन जीने की कला सीखी। वहाँ बड़े-बड़े लोग - जिन्हें आजकल मोटिवेशनल स्पीकर कहते हैं – वे सब प्रवचन देने आते थे। मिट्ठू अच्छी-अच्छी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। किशोर सदन के जिम में व्यायाम करता था, वहाँ के स्विमिंग पूल में तैरता था, लाइब्रेरी में किताबें पढ़ता था। वहाँ उसने चेस खेलना भी सीखा...
माया: वाओ, चेस भी। आपकी तरह?
अमित: हाँ। बिल्कुल मेरी तरह। स्टेट लेवल... दूसरे बच्चों के साथ खेलता था तो सबको हरा देता था।
माया: फिर वो छूट गया? अपने घर आ गया?
अमित: हाँ, छूट गया घर भी आ गया, अपनी माँ के साथ फिर से रहने लगा। जैसे कुछ हुआ ही न था... बस, जैसे एक बुरा सपना देखा हो और आँख खुल जाये। जैसे... जैसे एक स्कूल की जगह उसे दो स्कूल जाना पड़ा हो, थोड़ा ज़्यादा सीखने के लिये।
माया: किशोर सदन में और क्या-क्या सीखा उसने?
अमित: वहाँ जूडो भी सिखाते थे। वह उसने बहुत मन लगाकर सीखी…
माया: और?
अमित: और? और... उसने लाइफ़ का सबसे बड़ा सबक यह सीखा कि मौत बहुत आसान है। कभी भी, कहीं भी आ सकती है। ज़क्कनभाई जैसा पहलवान एक छोटे से लड़के के धक्के से मर सकता है। तब से आज तक उसने किसी को धक्का नहीं दिया। (स्वगत) लाइफ़ इज़ सो फ्रेजइल, हैंडल इट विथ केयर।
माया: पापा! अब कहाँ रहता है मिट्ठू, आप उसे जानते हैं?
दादी: हाँ बेटा, पापा उसे जानते हैं, मिलना है क्या?
माया: हाँ, मिलने जा सकते हैं?
अमित: हाँ। बिल्कुल।
माया: कब?
दादी: ये तुम्हारे सामने ही तो खड़ा है (भाव विह्वल) मेरा प्यारा मिट्ठू, तुम्हारा पापा मिट्ठू!
माया: पापा, मिट्ठू आप थे? आपने...
अमित: हाँ बेटा, मैं मिट्ठू हूँ। लेकिन मैंने उसे नहीं मारा। वह एक एक्सिडेंट था जिसका मुझे आज भी अफ़सोस है, और हमेशा रहेगा। अब मैं बहुत कॉशस रहता हूँ क्योंकि मुझे पता है मृत्यु जीवन की सच्चाई है।
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