kiss a tale एक कथा को चूमें, और खुशी से झूमें हम ... क़िस्से ठिलाते, खिलखिलाते - एक प्यारी सी अनुभूति, पॉडकास्ट, दृश्य-श्रव्य, कथन-श्रवण...

Thursday, May 16, 2024

थाने में छोरा

थाने में छोरा

अनुराग शर्मा

विचार: अरुण कुमार कालरा
पटकथा: अनुराग शर्मा


पात्र:
तरुण
राधा
किशनसिंह
किशोरी
सुदामा
मुंशी
सीमा
थानेदार
उपनाटक का कलाकार 1
उपनाटक का कलाकार 2
विचाराधीन क़ैदी 1
विचाराधीन क़ैदी 2
***

अरुण कुमार कालरा
दृश्य 1

तरुण: और, यह आ रही है मेरे ओवर की पहली बॉल
सुदामा: पहले फेंक तो लबड़हत्थे, बोलता बहुत है। अभी जायेगा मेरा छक्का

[बॉल हिट करने की आवाज़]

सुदामा: देक्खा! मैंने पहले ही बोला था।
किशोरी: और ये सुदामा आउट दूसरी बॉल में...
सुदामा: एएए, मैं नॉट आउट हूँ…
किशोरी: न, न, क्लीन बोल्ड है सुदामा...
सुदामा: ऐसे नहीं होता। मैं बात कर रहा था, इसने अचानक फेंक दी। मैं नहीं मानता।
किशोरी: तू इतना अकड़ता क्यों है सुदामा, जैसे तेरे पापा कहीं के थानेदार हों?
सुदामा: क्यों न अकड़ूँ, मेरा बैट है। मैं ले के जा रहा हूँ।
किशोरी: नाम इतना विनम्र, सु-दा-मा - और हरकतें इतनी अजीब, सुधर जा सुदामा
सुदामा: बैट छोड़ तरुण्।
तरुण: खेल के बीच में नहीं जा सकता सुदामा।
सुदामा: मैं क्यों नहीं जा सकता? मेरी ट्यूशन का टाइम हो गया है, मैं अपना बैट लेकर चला...
किशोरी: तेरा बैट भी ट्यूशन पढ़ता है क्या? बैट इधर दे और तू जा, ट्यूशन पढ़, वापस आकर अपना बैट ले जाना।
सुदामा: देखना, मैं तुम लोगों को छोड़ूंगा नहीं...
***

दृश्य 2

राधा: इतनी जल्दी में कहाँ जा रहा है बेटा? ये प्रसाद खाता जा
तरुण: सुबह बताया तो था, नाटक की रिहर्सल के लिये जाना है। प्रसाद वापस आकर खा लूंगा, अभी नाटक के लिये देर हो रही है।
राधा: पूरा दिन घर से बाहर क्रिकेट खेल रहा था, अब सूरज ढले घर में घुसा है और आते ही वापस जाने लगा। तेरे पापा सही कहते हैं, तू बिगड़ गया है।
तरुण: इसीलिये तो जल्दी कर रहा हूँ कि उनके आने से पहले निकल जाऊँ। आ गये तो फिर मुश्किल हो जायेगी। खन्ना अंकल की टूटी खिड़की की चुगली तो सुदामा उनसे रास्ते में ही कर देगा 
राधा: क्या? आज फिर एक शीशा तोड़ दिया। आग लगे इस मुए क्रिकेट के खेल में| तेरे पापा की सारी तनख्वाह तो कॉलोनी के शीशे बनवाने में ही लग जानी है।
तरुण: चिंता मत कर माँ, एक बार मुझे एक्टर बन जाने दे - सारे अहसान, सारे कर्ज़ चुका दूंगा।
राधा: जा बेटा, मन लगाकर रिहर्सल करना। कोई काम तो ध्यान से करता नहीं है।

[स्कूटर रुकने की आवाज़, फ़ुटस्टैप्स]

किशनसिंह: किधर चले बरखुरदार, इतना सज-धज के?
तरुण: पापा, वो... वैसे ही... वो हम लोग...
राधा: जाने दीजिये, निकलते पर नहीं टोकते हैं
किशोरी: नमस्ते आंटी, नमस्ते अंकल
किशनसिंह: आओ बेटा आओ, अच्छा! ...तुम भी साथ जा रही हो। कहाँ जा रहे हो तुम लोग?
किशोरी: वो अंकल, दशहरा-दीवाली आ रहे हैं न,,,, तो हम लोग रामलीला करने वाले हैं
किशनसिंह: अरे वाह, कितनी समझदार लड़की है। नहीं तो मैं सोचता कि यह सद्बुद्धि कहाँ से आ गयी मेरे बेटे में? ज़रूर जाओ बेटा, हरि ॐ! हरि ॐ! (तरुण से मुखातिब होकर) लेकिन तरुण ...
[एक लम्बी चुप्पी]

तरुण: लेकिन क्या पापा? जल्दी कहिये, मुझे देर हो रही है। लेकिन कहके आप इतनी लम्बी चुप लगा लेते हैं, किसी सस्पेंस ड्रामा की तरह...
किशनसिंह: इसे प्रेगनेंट पॉज़ कहते हैं पुत्तर! ड्रामा करता है और इतना भी नहीं जानता? मैं यह कह रहा था कि रिहर्सल के बाद घर आकर टाइम से सो जाना। कल दोपहर मेरे साथ चलना है तुम्हें...
तरुण: (जाते-जाते) कहाँ पापा?
किशनसिंह: (दूर से चिल्लाकर) तुझे लेकर थाने जाना है कल
तरुण: (रुककर) क्या? थाने? क्यों पापा?
किशोरी: अरे जल्दी चल, सारी प्रैक्टिस यहीं कर लेगा क्या? पहले ही लेट हो रहे हैं।
तरुण: (रुककर) चल रहा हूँ। लेकिन पापा मुझे थाने क्यों ले जा रहे हैं? ,,, ये ज़रूर उस सुदामा के बच्चे ने कोई उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ा दी होगी। थाने में तो पिटाई करते हैं बड़ी, …सुना है... वो न सुनते किसी की
किशोरी: क्या सुनता है तू, मुझे तो सुनाई दिया कि अंकल जी गाने के लिये ले जाने की बात कर रहे थे
तरुण: नहीं, गाना नहीं थाना बोला था, मैंने अच्छी तरह सुना
किशोरी: नहीं गाना कहा था। मुझे तो लगता है अब अंकल-आंटी तेरी एक्टिंग-सिंगिंग को सीरियसली लेने वाले हैं।
***

दृश्य 3

[बातचीत का शोरगुल]

कलाकार 1 (डायरेक्टर): लो जी आ गये, ड्रामे के प्रोटेगनिस्ट, तैयार हो जाओ सभी
कलाकार 2 (विलेन): ज़्यादा, हीरो हीरालाल न समझ अपने आप को, मेरे आदमी तेरी पन्नी उतार के पल भर में तुझे पन्नालाल बना देंगे

[पहले गोली चलने की आवाज़, फिर गोली से घायल व्यक्ति के असहनीय पीड़ा से चीखने की आवाज़]
***

दृश्य 4

[अगली सुबह की आवाज़ें, अलार्म, मुर्गा, चिड़ियाँ, आदि]

किशनसिंह: जल्दी तैयार हो जा बेटा, आज हमें जाना है न
तरुण: (उनींदा सा) इतनी सुबह-सुबह कहाँ जाना है पापा? इस भोर में किससे गाना सिखायेंगे?
किशनसिंह: गाना नहीं थाना। हमें पुलिस लाइंस के थाने में जाना है
तरुण: (घबराकर) क्यों पापा? कोई सुदामा कनेक्शन?
किशनसिंह: सुदामा से इतना ऑब्सेस्ड क्यों है तू कि हर बात में सुदामा कनेक्शन ढूंढता है? हाँ, वैसे यहाँ तो है, सुदामा कनेक्शन
तरुण: (घबराकर) मेरा जाना ज़रूरी है क्या?
किशनसिंह: (कड़ककर) हाँ! बहुत छूट दे दी हमने। अब पानी सर से ऊपर आ गया है। कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।
तरुण: तो भी, पुलिस, थाना... कल चलें?
किशनसिंह: चलेंगे तो आज ही। (कड़ककर) उठ अभी, तैयार होकर आ

[कदम, दरवाज़ा, स्कूटर स्टार्ट, स्कूटर स्टॉप]
***

दृश्य 5

किशनसिंह: पहुँच गये। स्कूटर यहाँ खड़ा कर देते हैं, सही जगह है।
तरुण: कोई ले गया तो?
किशनसिंह: किसी की शामत आई होगी तो ही वह पुलिस लाइंस से स्कूटर चुरायेगा
तरुण: ये जो आवारा छड़े घूम रहे हैं चड्ढी-बनियान में, इनमें से ही कोई लेकर चलता बनेगा
किशनसिंह: ये रंगरूट हैं, ये बनियान और हाफ़ पैंट्स में ही घूमते हैं। पुलिसवाले ही हैं, समझो, इनकी ये ही वर्दी है।
तरुण: अच्छा जी, और जो वो कपड़े फैला रहा है, जिसको वो औरत डाँट रही है।
किशनसिंह: वह भी, ये उन्हीं के क्वार्टर्स हैं।
तरुण: कैसे चूहा बनकर डाँट खा रहा है, … बाहर तो बड़े शेर बनते हैं ये पुलिसवाले, दब्बू कहीं के।
***

दृश्य 6

[आते जाते पुलिस बूट्स की आवाज़ें, थाने की एम्बिएंस]

मुंशी: उड़े संतरी गैल जा के पूछ लियो, सामने ही है वैसे... लीळा बोर्ड दिख जाऊगा। ... हाँ भई, तन्ने के काम सै? चोरी डकैत्ती, राहजनी, गिरहकट के झगड़ा?
किशनसिंह: जी, जी, नहीं जी, हम तो ऐमजी नगर में रहते है…
मुंशी: सब कहीं न कहीं रहते हैं, मन्ने बेरा सै। तू काम बता ताऊ...
किशनसिंह: जी, हमें राजराजेश्वर जी से मिलना है
मुंशी: हूँ... किसणे भेजा है?
किशनसिंह: जोगी जी ने, ऐमजी नगर से
मुंशी: वो हार्ली-डेविडसन आळा जोगी....
किशनसिंह: हाँ हाँ, वही जोगी जी, हमारे किरायेदार हैं वो।
तरुण: (स्वगत) ओत्तेरी, इसका मतलब सुदामा और उसके पापा ने ही मेरी शिकायत की है।

[इंटरकॉम डायलिंग की आवाज़]

मुंशी: हैलो, हैलो, सीमा, रजेसर साब आ लिये क्या?
सीमा: (इंटरकॉम पर) साहब तो रोज़ सुबह पाँच बजे आ जाते हैं। बैठे हैं अपने कमरे में, खाली हैं अभी... एक आसामी अभी निकला है।
मुंशी: ये पास ले और सीद्धे चला जा जे गैलरी में से, छोरा तेरे साथ है?
किशनसिंह: हाँ
मुंशी: एक पास ले इसका भी। सुन, रस्ते में कोई कुछ कहे तो सुनियो मती ना. कोई कुछ भी कहत्ता रहै कतई ना सुनियो किसी की भी। एक से एक छंटा हुआ बदमाश बंद सै म्हारे धौरे
[तरुण और किशन सिंह की पदचाप। पृष्ठभूमि में तेज़ होती जा रही आवाज़ें - ज़ोर-ज़ोर से लोहे के दरवाज़े और बेड़ियाँ खड़काने की]
तरुण: (स्वगत) मर गये... कैसे बांध के रखा है इन्हें। मेरा भी यही हाल करेंगे (स्पष्ट) घर चलो पापा, हम यहाँ क्यों आये हैं?
किशनसिंह: हम तेरे लिये यहाँ आये हैं बेटा। एक बाप जो कुछ भी करता है, अपने बच्चों के लिये ही करता है।
तरुण: पापा, कितनी अजीब सी जगह है यह। और यह देखिये, इन सबको कैसे बेरहमी से बंद कर रखा है।
विचाराधीन क़ैदी 1: हैलो भाई साहब, अरे भाई साहब, अबे सुन ले पहलवान, अरे सुन ले भाई, भाई साहब, प्लीज़...
तरुण: ये लोग सलाखों के पीछे क्यों हैं? (घबराकर) जिसे भी यहाँ लाते हैं, लॉकउप में डाल देते हैं क्या?
विचाराधीन क़ैदी 2: ज़रा अपना फ़ोन दे दे एक मिनट के लिये, मैं होम मिनिस्टर को फ़ोन करूंगा। ये ठुल्ले जानते नहीं मैं कौन हूँ। ए लड़के, सुन, सुन ज़रा... दे दे न!
तरुण: पापा दे दें?
किशनसिंह: इधर-उधर देखे बिना चुपचाप चलते रहो, याद नहीं रिसेप्शन पे मुंशी जी ने क्या कहा था?
तरुण: हाँ! सुना था पापा, लेकिन हमें दया करनी चाहिये, बेचारे बंद हैं। वैसे ये राजराजेश्वर कौन हैं?
विचाराधीन क़ैदी 1: भाई एक बीड़ी दे दे, अच्छा बीड़ी न सही, माचिस तो दे दे एक...
किशनसिंह: थाने में बैठे हैं तो हेडमास्टर तो होंगे नहीं। ज़रा सोच कौन होंगे? पहुँच गये। ज़रा पढ़ तो यह क्या लिखा है उनके ऑफ़िस के बाहर...
तरुण: राजराजेश्वर, थाना इंचार्ज, पुलिस लाइंस। ... दद्दा रे! पापा, मुझे यहाँ क्यों लाये हैं आप?
किशनसिंह: तेरे भले के लिये लाया हूँ बेटा, चुपचाप अंदर चल
***

दृश्य 7

[दरवाज़े पर नॉक करने की आवाज़]

तरुण: अरे, ये ऑफ़िस तो थाने के अंदर मंदिर जैसा है, दीवारों पर भगवान के चित्र लगे हैं। अच्छा है कि थानेदार अभी नहीं आया है, उस तरफ़ टंगी हुई वर्दी उसी की लगती है। और ये सामने तो कोई पंडित जी बैठे हैं।
किशनसिंह: नमस्ते पंडित जी महाराज! जी जोगी जी ने आपके पास भेजा है।
थानेदार: आप किशनसिंह जी हैं क्या? जी आइये, आइये! नमस्कार। येही है आप लड़का? इसी से परेशान हैं आप?
तरुण: (स्वगत) मारे गये, चढ़ जा बेट्टा सूली पर, भली करेंगे राम...
किशनसिंह: जी, मैं ही हूँ किशनसिंह... यह तरुण है, मेरा बेटा
थानेदार: जी, बैठिये न... भाईसाहब ने बताया था आपके बारे में। (सर्द स्वर में) क्या नाम है तुम्हारा? उधर नहीं, तुम इधर बैठो मेरे पास
तरुण: जी, आप पंडित जी हैं क्या?
थानेदार: बेटा, मैं हूँ राजराजेश्वर! इस थाने का इंचार्ज। इलाक़े के गुंडे-बदमाश मुझसे थर-थर काँपते हैं। लेकिन शरारती बच्चों का भी इलाज करता हूँ मैं।
तरुण: (स्वगत) मारे गये बेट्टा...
किशनसिंह: जी, इसने क्रिकेट खेलने में कॉलोनी भर की खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले हैं। पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगाता है यह। कहता है गाने गायेगा, नाटक खेलेगा। मुझे तो बहुत फ़िक्र है, क्या बनेगा इसका।
थानेदार: हूँ, सुदामा बता रहा था कि कल ये उसका बैट वापस नहीं कर रहा था। लेकिन आप चिंता मत कीजिये, आप सही जगह आये हैं। और किसलिये बैठे हैं हम यहाँ? … तरुण, हाथ आगे करो, यहाँ रखो, ज़रा, यह पाउडर डालने दो
तरुण: (घबराकर) यह क्या कर रहे हैं, मेरे फ़िंगरप्रिंट क्यों ले रहे हैं? जेल में डालेंगे क्या?
थानेदार: हिलो मत। त-र-उ-ण, … 27 + 33 + 5 + 26, … 9+1, 10, बेटा एक मूलांक वाले हो। बेटा, फ़िंगरप्रिंट नहीं बेटा, देखो पाउडर से हाथ की रेखाएँ कितनी स्पष्ट हो गयीं। साफ़ दिख रहा है कि आर्टिस्ट हो तुम, बहुत आगे जाओगे। क्या बनना चाहते हो? क्या पसंद है तुम्हें?
तरुण: एक्टिंग का शौक है मुझे, एक्टर बनना चाहता हूँ, सर।
थानेदार: सर नहीं बेटा, अंकल बोल सकते हो, जोगी जी का भाई हूँ मैं, सुदामा का चाचा, तो तुम्हारा भी चाचा ही हुआ। शक्ल मिलती है न जोगी जी से?
तरुण: हाँ अंकल, मैं सोच रहा था, आप जाने-पहचाने लग रहे थे। ये वर्दी आपकी है?
थानेदार: हाँ बेटा, आधे घंटे में मेरी ड्यूटी शुरू होगी तब वर्दी पहन लूंगा। तब तक जनसेवा। हा हा हा!, बच्चे का जन्म जून में हुआ था कि जनवरी में, किशनसिंह जी?
किशनसिंह: जी, 23 जनवरी की पैदाइश है इसकी। आप तो चमत्कारी हैं...
थानेदार: अरे वाह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ पड़ता है तुम्हारा जन्मदिन। वे नेशनल हीरो थे, तुम एक्टिंग के हीरो बनोगे, यशस्वी भव!
किशनसिंह: जी, जन्मपत्री लीजिये।
थानेदार: किशनसिंह जी, आपके बेटे पर सरस्वती जी की कृपा है। कलाकार बनने का बड़ा अच्छा योग बन रहा है इसका। जो करता है करने दीजिये 
किशनसिंह: लेकिन गाने-बजाने, और एक्टिंग से गुज़ारा कैसे होगा इसका?
थानेदार: क्या बात कर रहे हैं किशनसिंह जी? लता मंगेशकर से ज़्यादा आदरणीय व्यक्ति कौन है भारत में? और अमिताभ बच्चन जितना फ़ेमस कोई और है क्या? मस्त रहिये, लड़के का उन्नति का योग है। घबराने की कोई बात नहीं है। बेटा मुझे एक प्रॉमिस करोगे?
तरुण: जी हाँ अंकल, बोलिये।
थानेदार: प्रॉमिस करो कि आयंदा तुम कभी किसी की खिड़की नहीं तोड़ोगे। किसी की मर्ज़ी के बिना उसका बल्ला अपने पास नहीं रखोगे। कोई ग़लत काम नहीं करोगे कभी।
तरुण: जी अंकल!
थानेदार: यहाँ आते हुए तुमने कुछ लोग देखे होंगे जो सलाखों के पीछे थे। अगर वे बचपन में मुझे मिले होते तो उनका वर्तमान शायद इतना खराब नहीं होता। अपनी इच्छाएँ पूरी करो, बस किसी का नुकसान नहीं करना।
किशनसिंह: लेकिन भाई साहब...
थानेदार: मेरा विश्वास कीजिये, ये बच्चा आपको निराश नहीं करेगा। इसे सपोर्ट कीजिये। प्रसन्न बच्चे ही प्रसन्न राष्ट्र बनाते हैं।
किशनसिंह: जी, हाँ जी! एकदम सही कह रहे हैं आप!
थानेदार: जी, अब मेरी ड्यूटी का समय हो रहा है, बेटा पढ़ाई का ध्यान रखना, … और जब फ़ेमस हो जाओगे तो मुझे मिठाई खिलाने ज़रूर आना। शुभमस्तु!
तरुण: जी अंकल!
किशनसिंह: शुक्रिया भाईसाहब, नमस्ते! चल बेटा घर चलते हैं!

[कदमों की आवाज़ – स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज़]

तरुण: पापा, जल्दी चलिये, मुझे रिहर्सल पर भी जाना है।
किशनसिंह: ज़रूर बेटा, अभी हवाई जहाज़ बनाता हूँ।

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