चोरी-चोरी जब... (नाटक)
अनुराग शर्मा |
कथा व पटकथा: अनुराग शर्मा
पात्र (17):
बॉस / पुलिस चीफ़
खुमन / पति / एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अधिकारी
सुधा / पत्नी
चोर / प्रेमी
सिन्हा / सब इंस्पेक्टर
नौकरानी
फ़रियादी
महिला अपराधी
जनसेविका
क़ैदी
सिपाही 1
सिपाही 2
सिपाही 3
सिपाही 4
सिपाही 5
सिपाही 6
सिपाही 7
सिपाही 8
***
दृश्य 1
{पुलिस थाने के गेट पर खड़े सिपाही से बात करता हुआ एक फ़रियादी।}
फ़रियादी: साहब, हमारे केस में कुछ पता चला क्या?
सिपाही 1: कल आना, आज तेरे वाले दीवान जी छुट्टी पे हैं।
फ़रियादी: रोज़, कोई न कोई नयी अड़चन निकल आती है साहब, आप ही बता दो न, मेरा घर बहुत दूर है। कल आऊँ, और दीवान जी फिर छुट्टी पर हुए तब?
सिपाही 1: तो दीवान जी तुझसे पूछ्कर छुट्टी लेंगे क्या? चल निकल यहाँ से! चले आते हैं, कहाँ-कहाँ से।
दृश्य 2
{थाने के भीतर, एक ओर कैदियों की चीख-पुकार के बीच एक क़ैदी को पीटते हुए दो सिपाही}
क़ैदी: मैंने कुछ नहीं किया साब, मैं बेकसूर हूँ
सिपाही 2: (व्यंग्य से) हमने नहीं किया, हमने नहीं किया। (कड़क स्वर में) यहाँ सब यहीं कहते हैं। सिपाही 3: (क़ैदी को डंडे से मारते हुए) हवालात में दो-चार घंटे की पूजा के बाद मुँह से खुद-ब-खुद सच झड़ने लगता है।
दृश्य 3
{थाने के भीतर, दूसरी ओर एक महिला सिपाही, एक महिला अपराधी को ले जाते हुए। साथ में एक जनसेविका}
जनसेविका: (महिला अपराधी से) सुन, यही कहना कि मर्द बहुत पीटता था, सिगरेट से दागता था।
महिला अपराधी: लेकिन वो तो सिगरेट पीता ही नहीं था, शराब भी नहीं, नामर्द था साला। चलते कुत्ते को लात भी नहीं मार सकता था।
जनसेविका: तो क्या ये कहेगी कि यार के साथ मिलकर उस मरियल का गला दबा दिया? (व्यंग्य से) फाँसी चढ़ा दो मी लॉर्ड? (क्रूरता से) अब ध्यान से सुन - जो कह रही हूँ वही बोलना, वरना बचेगी नहीं।
महिला सिपाही: (अपराधी को खींचते हुए) जल्दी चल, ये तेरी ससुराल नहीं है।
जनसेविका: (सिपाही से) इसका ध्यान रखना मैडम, यह तो बेवकूफ़ है। फँस जायेगी।
महिला सिपाही: आप साथ चलके खुद ही लिखा दीजिये, मैं साब के सामने झूठ नहीं बोल सकती।
जनसेविका: चल तो रही हूँ, और क्या जान लेगी किसी की?
दृश्य 4
{थानाध्यक्ष का कार्यालय}
खुमन: जय हिंद सर, आपने याद किया?
बॉस: जय हिंद खुमन, इस नई बस्ती का कुछ इंतज़ाम करना पड़ेगा। इल्लीगल हैं सब के सब, लेकिन सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंगने वाली। जब एक दिन बम की तरह फटने लगेंगे, तब मीडिया, सरकार, जुडिशियरी, जनता सब मिलकर हमारा गला नापेंगे।
खुमन: इंतज़ाम नहीं हो पाया है सर, अभी तक सही आदमी नहीं मिला।
बॉस: क्यों, वो मुस्तकीम है न। उसकी दर्जी की दुकान खुलवा दो वहाँ...
खुमन: नहीं सर। ये वैसे लोग नहीं हैं। दर्ज़ी का कोई काम नहीं है वहाँ। आदमी लुंगी पहनते हैं...
बॉस: लुंगी नहीं तहमद
खुमन: जी वही, तहमद, … आदमी तहमद पहनते हैं और औरतें सरोंग बांधती हैं, दर्जी की ज़रूरत ही नहीं पड़ती उन्हें।
बॉस: तो एक-दो हज्जाम ही भेज दो, शायद कुछ बात बने।
खुमन: सर, वह भी सोचा था मैंने, लेकिन आदमी दाढ़ी रखते हैं और औरतें लम्बे बाल, बच्चों को घर में ही गंजा कर देते हैं। हज्जाम को तो टार्गेट पे ले लेंगे। तुरंत पहचान में आ जायेगा कि पुलिस का मुखबिर है
बॉस: इतनी बड़ी तादाद में नये लोग टिड्डों की तरह चले आ रहे हैं और हमें उनके मन की बात पता ही नहीं, कमाल है। कुछ तो करना पड़ेगा खुमन। (निराशा से) तुम जैसे टॉप क्लास ऑफ़िसर्स की टीम के होते हुए ...
खुमन: सर, मैंने पता किया है। ये लोग मछली के शौकीन हैं, मच्छी वाले चाचा से बात करता हूँ, एक ठेला रोज़ शाम को वहाँ लगवा दूंगा।
बॉस: ठीक! ... मैंने नोटिस किया, आज बड़े डाउन से लग रहे हो, सब ठीक तो है न?
खुमन: नहीं सर, वही नरकटियागंज मर्डर का केस, एक हफ़्ते से सोया नहीं हूँ। भयंकर सिरदर्द है आज, बुखार भी लग रहा है।
बॉस: तुम्हारे जैसे यंग, एनर्जीटिक और ओवरवर्क्ड अफ़सर को आराम करना भी सीखना चाहिये। आज घर जाकर आराम करो, सुधा भी खुश हो जायेगी। रोज़ आधी रात के बाद पहुँचते हो।
खुमन: नहीं सर, काम बहुत है। सरदर्द को मैनेज कर लूंगा किसी तरह। आज बाहर नहीं जाऊंगा, ऑफ़िस में ही रहूंगा।
बॉस: अरे नहीं खुमन, घर जाओ, आराम करो। काम होता रहेगा। अपना ध्यान भी रखा करो।
दृश्य 5
{थाने में ही एक अन्य कमरे में}
सिन्हा: खुमन सर ने नरकटियागंज वाली सारी फ़ाइलें मंगाई थी, रख लो।
सिपाही 5: आज हैं कहाँ खुमन सर? हमारे चुलबुल पांडे
सिपाही 6: हीरो तो हैं, सच में! इस उम्र में इतने एनकाउंटर तो किसी ने नहीं किये होंगे। इतने मेडल। राष्ट्रपति का गैलेंट्री अवार्ड
सिपाही 7: नयी-नयी शादी हुई है। उसका भी ख्याल नहीं। बस काम, काम, काम।
सिपाही 5: श... आ रहे हैं
{खुमन का आगमन, सभी खड़े हो जाते हैं}
सिन्हा: सर, नरकटियागंज मर्डर वाली फ़ाइल, फ़ोरेंसिक्स भी हैं।
(खुमन चलते-चलते गिरने को होता है। सिन्हा दौड़कर उसे सम्हालता है।)
सिन्हा: (गिरते हुए खुमन को सहारा देते हुए, घबराकर) अरे सर, सम्भलकर...
खुमन: थैंक यू सिन्हा। फ़ाइलें मेज़ पर रख दो।
सिपाही 6: क्या हुआ सर, आप ठीक तो हैं न?
खुमन: नहीं ठीक नहीं लग रहा, भयंकर सिरदर्द है। कंसंट्रेट नहीं कर पा रहा हूँ।
सिपाही 7: सर, ये दो गोलियाँ ले लीजिये और थोड़ी देर बैठकर आराम कीजिये
{खुमन कुर्सी पर बैठकर, गोलियाँ गटककर, पानी पीता है}
खुमन: हाँ, अब थोड़ा ठीक लग रहा है।
सिपाही 8: सर आज अपने घर में आराम कीजिये।
खुमन: नहीं, कुछ देर रुककर देखता हूँ।
सिपाही 4: नहीं सर, आप तो कभी बीमार नहीं पड़ते। आज आप ठीक नहीं लग रहे हैं।
सिपाही 7: यस सर, घर जाइये, आराम कीजिये, यहाँ हम सब सम्हाल लेंगे।
सिपाही 6: सर, आप रोज़ देर रात तक यहाँ रहते हैं, आज जल्दी जाकर मैडम को खुश कर दीजिये।
सिपाही 7: सर, मैं आपको घर तक छोड़ देता हूँ।
खुमन: नहीं , मैं जीप चला लूंगा, घर तो पास ही है।
सिपाही 7: ओके सर
खुमन: मैं घर पर सुधा को फ़ोन कर देता हूँ...
सिपाही 4: नहीं सर, घर की चाबी तो आप रखते ही हैं। चुपचाप घर जाकर मैडम को सरप्राइज़ कर दीजिये। उनको भी पता चले कि हमारे कड़क सर के अंदर कितना नरम दिल है।
{खुमन बाहर आकर जीप में बैठकर ऑफ़िसर्स क्वार्टर्स की ओर ड्राइव करता है}
दृश्य 6
{खुमन की जीप ऑफ़िसर्स क्वार्टर्स के पास रुकती है। एक नौकरानी उसके पास आती है।}
नौकरानी: अरे साब, आज आप दिन में ही आ गये?
खुमन: हाँ, तो?
नौकरानी: आप यहीं रुकिये, मैं मेमसाब को बता के आती हूँ।
खुमन: (दर्द भरी आवाज़ में) अरे मैं खुद बता दूंगा।
नौकरानी: नईं साब, वो तो मेरा जॉबइच है, मेम साब मुझे पगार भी तो देती हैं।
खुमन: चल भाग यहाँ से पागल! मेरा सरप्राइज़ खराब करेगी तू।
{नौकरानी अचकचाकर खुमन को देखती है।}
खुमन: बोला न, भाग, वरना गोली मार दूंगा।
नौकरानी: (डरकर) नईं साब, मारना मत। जाती हूँ। अभीइच जाती हूँ।
{नौकरानी भागती है।}
खुमन: (हँसते हुए) डर गयी, भोली लड़की!
दृश्य 7
{दबेपाँव अपने फ्लैट में जाकर चाभी से ताला खोलकर धीरे से दरवाज़ा खोलकर बिना आवाज़ अंदर जाता है।}
खुमन: (स्वगत) सुधा शायद बैडरूम में है, चुपके से जाकर चौंकाता हूँ।
{बैडरूम से खुसफुसाह्ट की आवाज़ सुनाई देती है जो पास आने पर स्पष्ट होती जाती है}
प्रेमी: कल से हम लोग कहीं और मिला करेंगे...
सुधा: कम ऑन डियर, तुम इतने टेंस क्यों हो?
प्रेमी: पहले यह ठुल्ले की तस्वीर यहाँ से हटाओ। यह तस्वीर रोज़ मुझे डराती है। लगता है जैसे अभी फ़्रेम से बाहर निकलकर गोली चला देगा।
सुधा: रिलेक्स डियर, क्यों इतने खूबसूरत लम्हों को बर्बाद कर रहे हो।
प्रेमी: जब तक यह एनकाउंटर स्पेशलिस्ट मुझे देख रहा है मैं रिलेक्स कैसे करूँ?
सुधा: चुप, एकदम चुप! इतने बड़े चोर होकर, एक बेजान फ़ोटो से डरते हो।
प्रेमी: चोर? मैं? अरे, मैं चोर नहीं, वकील हूँ।
सुधा: तुम चोर ही हो बुद्धू! मेरा मन, मेरा तन, सब तो तुमने चुरा लिया है। पुलिस के इतने क़ाबिल अफ़सर के घर में सेंध लगाकर, उसकी घरवाली के दिल में चोरी कर ली। तुम्हें और क्या कहकर बुलाऊँ मेरे चितचोर!
प्रेमी: ठीक कहती हो डियर! इधर आओ, ज़रा सा तो समय मिलता है हम उसे भी बातों में गँवा रहे हैं
सुधा: हाँ, लेकिन शुरुआत तुमने ही की थी।
दृश्य 8
{खटाक से दरवाज़ा खुलता है। खुमन के सामने उसकी पत्नी सुधा और एक अनजान पुरुष हैं।}
खुमन: (अंगार उगलते हुए) क्या हो रहा है यहाँ?
सुधा: (हतप्रभ) आप, आप कब आये? (आश्चर्य से) आज दिन में ही आ गये? तबियत तो ठीक है न? (प्रेममय) बैठिये, मैं चाय बनाती हूँ
खुमन: (व्यंग्य से) पहले कपड़े तो ठीक कर लो, छी छी छी! (अंगार उगलते हुए) कौन है यह कमीना? यहाँ क्या कर रहा है?
सुधा: मेरा दोस्त है, (सम्हलते हुये) … हम एक दूसरे को दिल की गहराइयों से चाहते हैं।
खुमन: बिल्कुल ग़लत है यह! ओह... सर दर्द से फ़टा जा रहा है। मुझसे शादी करने के बाद किसी और को चाहने का क्या मतलब है?
सुधा: (शांति से) मतलब साफ़ है। हम रोज़ मिलते हैं। (एक एक शब्द चबाकर) एक दूसरे से मिले बिना हम ज़िंदा नहीं रह सकते ...
खुमन: (पूरी ताकत से चिल्लाकर) क्या बकती हो?
सुधा: आवाज़ नीची पतिदेव, पुलिसवाले हो, नया एडल्ट्री लॉ पढ़ो ...
प्रेमी: हाँ, अब तो कानून भी हमारे पक्ष में है। आपको हमें रोकने का कोई अधिकार नहीं है। section 497 has been struck down. I am an advocate, you know?
खुमन: (प्रेम से) एडवोकेट बेटा! तेरा कानून अभी तेरे माथे में छेद करने वाला है (गुर्राकर) जानता है कि मुझे अपनी सम्पत्ति की रक्षा का पूरा अधिकार है...
सुधा: (बात काटते हुए) मैं आपकी सम्पत्ति नहीं हूँ मिस्टर पतिदेव। मैं भी एक इंसान हूँ। मुझे अपनी इच्छा से जीना आता है।
खुमन: बेशक, तुम मेरी सम्पत्ति न सही, ... मेरी भी न सही। (अट्टहास करते हुए) मत भूलो कि यह घर अभी भी मेरा है... और अपने घर में घुस आये चोर को (ठहरकर) जान से मारना मेरा कर्तव्य भी है और पुलिस ऑफ़िसर होने के नाते मेरा (चबा-चबाकर) अधिकार भी।
{धाँय... सिंगल शॉट के साथ ही प्रेमी चीख मारकर धड़ाम से नीचे गिरता है}
{सुधा का रोना-चिल्लाना शुरू हो जाता है।}
सुधा: यह क्या किया तुमने? यह चोर नहीं, मेरा दोस्त है। मैं गवाही दूंगी, मैं तुम्हें फाँसी चढ़वाऊंगी ... मैं ...(चिल्लाते हुए) देखना, अब मैं तुम्हारा क्या हाल करती हूँ।
खुमन: देख रहा हूँ जानेमन। ... चोर को सामने देखकर घबराहट में निशाना चूक भी तो सकता है। अरे, अरे, मेरा निशाना भी चूक रहा है। देखते हैं अगली गोली किसे लगती है।
{धाँय... सिंगल शॉट की आवाज़ के साथ सुधा भी चीखकर धड़ाम से नीचे गिरती है}
{खुमन पिस्तौल बिस्तर पर रखकर, अपना सिर पकड़कर बिस्तर के किनारे बैठ जाता है। कुछ देर रुककर फ़ोन डायल करता है।}
सिन्हा: (दूसरी ओर से फ़ोन पर) जय हिंद सर!
खुमन: सिन्हा, मर्डर स्क्वैड की एक टीम मेरे घर भेजो, तुरंत। यहाँ दिनदहाड़े एक चोर आ गया था।
सिन्हा: (दूर से फ़ोन पर) दिनदहाड़े आपके घर में घुसने की ज़ुर्रत किस गधे ने की सर? मारा गया होगा सुसरा? आप तो ठीक हैं न सर?
खुमन: नहीं सिन्हा, आज मेरी तबियत खराब है। चोर तो ऑन द स्पॉट उड़ गया लेकिन आज एकबारगी मेरा निशाना भी चूक गया, एक गोली मेरी वाइफ़ को लग गयी है। (सुबककर) शी इज़ डैड टू। जल्दी आओ। आज पहली बार मैं मौत देखकर टूट गया हूँ।
सिन्हा: (दूर से फ़ोन पर) सर, पी सी आर वैन दो मिनट में और एम्बुलेंस पाँच मिनट में पहुँच रही है। हिम्मत रखिये सर, मैं भी आ रहा हूँ।
{खुमन फ़ोन डिसकनेक्ट करके उसे एक ओर रखकर सुबकने लगता है।}
खुमन: मैं मौत देखकर टूट गया हूँ? नहीं, … मैं शायद हमेशा से टूटा हुआ था। कभी किसी से जुड़ ही न पाया। शायद किसी एक से जुड़ सकता था। लेकिन आज, आज वह उम्मीद भी ख़त्म हो गयी...
{पृष्ठभूमि में पीसीआर वैन व एम्बुलेंस की आवाज़ें आती हैं। परदा गिर जाता है।}
***
No comments:
Post a Comment